Thursday, September 5, 2013

Thursday, August 19, 2010

ANPARA BAZAR shaktinagar .


I LOVE YOU ANPARA

BINA


ANPARA BAHUT ACHI JAGHA HAI.

Monday, November 16, 2009


ओ चुप रहने वाली,तुम तक मेरा खामोश सलाम पहुँचे।तुम खामोश हो, मैं खामोश हूँ, ज़िन्दगी खामोश है।ये कलम कितनी खामोशी से चलती है अब। इसके अक्षरों में वो आवाज़ नहीं रही जो मेरेदिल की ही प्रतिध्वनि थी। मेरे क़दम आजकल कितनी खामोशी से उठते हैं,चलते हैं, थके-थके से। ये साँसें कितनी खामोशी से चलती हैं, ये दिलकितनी खामोशी से धड़कता है आजकल।जालिम, तू क्या चुप है, जीवन का संगीत ही थम गया है। हर साज चुप है,हर आवाज़ चुप है। मैं गाता हूँ तो मेरी आवाज़ सिर्फ मेरे ही दिल तकपहुंचती है, किसी तीर की तरह और उसे घायल कर देती है।इन दिनों कभी चिड़िया चहकती है या कोयल गाती है तो मैं उन्हें डाँटता हूँकि अरे चुप हो जाओ तुम, क्योंकि मेरी कविता चुप है। जब कविता बोलेगीतब ऐ चिड़िया तू चहकता, तब ऐ कोयल तू गाना। क्योंकि तुम्हारी खामोशीमें चिड़िया का चहकना या कोयल का गाना कानों में अमृत नहीं, विषघोलता हुआ-सा लगता है। मगर तुम्हारी जिद देखकर लगता है कि न तुम मुझसे बोलोगी, चिड़ियाचहकेगी और न कोयल गायेगी। तुम तो खामोश रहोगी ही, तुम्हारी खामोशीके चलते उन्हें भी खामोश रहना होगा।ये खामोशी मुझे प्रिय होती, यदि सिर्फ तुम बोलती और सारी प्रकृति चुपरहती। तुम्हारे स्वरों में प्रकृति के हर स्वर का अनुभव कर लेता मैं। मगरसारी प्रकृति बोले और तुम चुप रहो, ये मुझे सहन नहीं। सारी प्रकृति कीखामोशी मुझे स्वीकार है, मगर तुम्हारी नहीं। तुम कुछ बोलो कवि। तुम्हारीखामोशी मुझे भी कुछ बोलने से रोकती है। इससे पहले कि मैं हमेशा केलिए खामोश हो जाऊँ, अपनी खामोशी को तोड़ लो ज़िन्दगी।३मेरी जाने ग़ज़लज़िन्दगी की कठिन राह सामने है। चाहे मेरा साथ छोड़ दे, चाहे मेरे साथचल। फैसला तुझे ही करना है।संभव है, जिस राह पर मैं चलूं, परिस्थितियोंके काँटों से भरी हो वह राह, मगर विश्वास रख, उन्हें मैं तेरे पाँवों में चुभनेन दूंगा। मेरा प्यार फुलों की पंखुरियां बन कर राह में बिछ जाएगा। संभवहै, जिस राह पर मैं चलूं, दुखों के सूर्य की तेज धूप का सामना करना पड़ेहमें, मगर विश्वास रख, उस धूप से तेरे कोमल पुष्प-से चेहरे को कुम्हलानेनहीं दूँगा मैं। मेरा प्यार दामन बनकर तुझे अपने साये में ले लेगा।यदि कभी मेरे साथ चलते-चलते तू थकने लगेगी तो मेरी बाँहें तेरा सहाराबनेंगी और मेरी आँखों से निकलकर मेरे प्यार की बूंदें तुझे नयी ताज़गी देंगी। जिस राह पर मैं चलूं, उस पर शायद तुझे ऐश्वर्य और विलास न मिले,मगर मेरा प्यार भरपूर मिलेगा। अब चुनाव तुझे करना है कि तू ऐश्वर्य काबेजान सुख चाहती है या भावनाओं के समर्पण की अतुलनीय, अनुपमअनुभूति चाहती है।मैं मानता हूँ, प्यार पेट नहीं भरता। लेकिन भरा पेट प्यार की कमी को पूरानहीं कर सकता। और फिर इतना कमज़ोर तो मैं भी नहीं कि दो वक्त़ कीरोटी भी कमा न सकूं। बल्कि तू और तेरा प्यार मेरे साथ रहे तो सफलताके कितने शिखर मेरे कदमों तले छोटे हो जाएंगे, कौन जानता है?सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि तुझे मुझसे कितना प्यार है?किस सीमा तक पहुँचा है तेरा प्यार? मेरा प्यार तो असीम है, इसीलिएहज़ारों आशंकाओं के बावजूद मैं अपनी राह पर साथ चलने के लिए बाँहेंफैलाये तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ, तुझे पुकार रहा हूँ। अब ये तेरी मर्जी है, तूआये या न आये। मेरे न प्यार की इंतहा है और न इंतज़ार की -तमाम उम्र तेरा इंतज़ार कर लेंगे,मगर ये रंज रहेगा कि ज़िन्दगी कम है।
Posted by nirvikalp at Saturday, November 01, 2008 2 comments Links to this post
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Tuesday 21 October 2008

सागर के पत्र कविता के नाम
१मेरीज़िन्दगी चाहे हम भौतिक रूप से एक-दूसरे से दूर चले जाएं, मगर एक अहसास के रूप में तुम हमेशा मेरे पास, मेरे साथ रहोगी। मेरी हर नई कविता में तुम्हारा चेहरा होगा, मेरी हर कहानी में तुम्हारी याद होगी, मेरे हर शब्द में तुम्हारा ख्याल छुपा होगा। तुम्हारी याद हर रात सपना बनकर मेरे साथ रहेगी और हर सुबह जीने का एक नया उत्साह बनकर मेरे मन में इंतज़ार का चिराग जलाती रहेगी। तुम्हारे इंतज़ार का चिराग मैं कभी बुझने नहीं दूँगा। वह रोशन रहेगा, हर पल, हर वर्ष और हर जन्म में।तुमसे मैं और कुछ न चाहूँगा, पर इतना अवश्य कि कभी मेरी याद को अपने दिल से मिटने न देना। विरह के पलों में यही अहसास तो मुझे जीवन देगा कि चाहे हम दूर सही, मगर तुम मुझे चाहती हो, मुझे प्यार करती हो।कभी मेरी याद में तुम्हारी आँखों में यदि आँसू की कोई बूंद छलछलाई तो तुम महसूस करोगी कि तुम्हारी पलक पर अपने अधर धरे मैं आँसू की उस बूंद को चूम रहा हूँ। और यह अहसास तुम्हें याद दिलाएगा कि हमारा मन से मन का बंधन अमर है।.........सागर२मेरी कविता, तुम तक मेरे प्यार की रोशनी से भरी याद पहुँचे। रात सपने में रोशनी का शहजादा चांद अपने अंगरक्षक तारों के संग आया और बोला, गुस्ताख़ दिवाने, तुमने हमारी तुलना अपने महबूब से करने की गुस्ताख़ी की है इसलिए तुम्हें इस जुर्म की सजा मिलेगी। मैंने पूछा, क्या सजा मिलेगी? तो वह बोला, हम तुम्हारी ज़िन्दगी में अब कभी भी रोशनी नहीं करेंगे। मैंने कहा, ऐ रोशनी के शहजादे, यूँ अपने आप पर गुमान न करो। जाओ मुझे भी तुम्हारी जरूरत नहीं है। मेरे महबूब की यादों की रोशनी जब तक मेरी ज़िन्दगी में है, मुझे किसी और रोशनी की जरूरत ही नहीं है।मेरी ज़िन्दगी की रोशनी, कब तक तुम साथ रहोगी? चांद की तरह चाहे दूर से ही मेरी ज़िन्दगी को रोशनी का सहारा देती रहना, मगर नज़रों के सामने रहना। चांद के समान कभी परिस्थितियों के बादलों में छुप न जाना।आजकल एक तारे की तरह मैं अपने चांद को दूसर से देखता हूँ और मुस्कराता हूँ। आँसू बहाने या दुःख मनाने का हक तो तुमने मुझसे ले ही लिया है प्यार में। अब मैं तुम्हारी याद में अपने-आप को डूबो देना चाहता हूं।आज एक बात मन में आई कवि कि भक्ति और प्यार में कोई खास अंतर नहीं है। अपने आराध्य की धुन में अपने अस्तित्व को भुला देना, यही तो मंज़िल है प्यार की और भक्ति की भी। इसीलिए तो मैं तुम्हें अपना ख़ुदा मानता हूँ। जिसकी इबादत में मैं हमेशा डुबा रहता हूँ।और ख़ुदा को पाना कभी आसान हुआ है? बावजूद इसके कि हर आदमी में छुपा रहता है वह। तुम्हें पाना भी मुश्किल है मेरे ख़ुदा, मेरी मुहब्बत के ख़ुदा। बावजूद इसके कि तुम मेरे दिल में हो, दिल की धड़कनों में हो, हर साँस में हो।.......सागर
Posted by nirvikalp at Tuesday, October 21, 2008 10 comments Links to this post
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अमृता प्रीतम और इमरोज़ के पत्र
१....तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौटकर नहीं आती। उम्र दिल का साथ नहीं दे रही है। दिल उसी जगह पर ठहर गया है, जहाँ ठहरने का तुमने उसे इशारा किया था। सच, उसके पैर वहाँ रूके हुए हैं। पर आजकल मुझे लगता है, एक-एक दिन में कई-कई बरस बीते जा रहे हैं, और अपनी उम्र के इतने बरसों का बोझ मुझसे सहन नहीं हो रहा है.....अमृता२.......यह मेरा उम्र का ख़त व्यर्थ हो गया। हमारे दिल ने महबूब का जो पता लिखा था, वह हमारी किस्मत से पढ़ा न गया।.......तुम्हारे नये सपनों का महल बनाने के लिए अगर मुझे अपनी जिंदगी खंडहर भी बनानी पड़े तो मुझे एतराज नहीं होगा।......जो चार दिन जिंदगी के दिए हैं, उनमें से दो की जगह तीन आरजू में गुजर गए और बाकी एक दिन सिर्फ इन्तजार में ही न गुजर जाए। अनहोनी को होनी बना लो मिर्जा।..... .अमृता ३तुम्हारा ख़त मिला। जीती दोस्त। मैं तुमसे गुस्से नहीं हूँ। तुम्हारा मेल दोस्ती की हद को छू गया। दोस्ती मुहब्बत की हद तक गई। मुहब्बत इश्क की हद तक। और इश्क जनून की हद तक। और जिसने यह जनून की हद देखी हो, वह कभी गुस्से नहीं हो सकता। अगर यह अलगाव कोई सजा है तो यह सजा मेरे लिए है, क्योंकि यह रास्ता मेरा चुना हुआ नहीं है। मेरा चुना हुआ रास्ता मेल था। अलगाव का यह रास्ता तुम्हारा चुना हुआ है, तुम्हारा अपना चुनाव, इसलिए तुम्हारे लिए यह सजा नहीं है...........अमृता४मेरे अच्छे जीती, आज मेरे कहने से, अभी, अपने सोने के कमरे में जाना, रेडियोग्राम चलाना और बर्मन की आवाज सुनना- सुन मेरे बंधु रे। सुन मेरे मितवा। सुन मेरे साथी रे। और मुझे बताना, वे लोग कैसे होते हैं, जिन्हें कोई इस तरह आवाज देता है। मैं सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही, पर यह मैं जानती हूँ - मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई इस तरह आवाज दे। और मैं यह भी जानती हूँ, मेरी आवाज का कोई जवाब नहीं आएगा। कल एक सपने जैसी तुम्हारी चिट्ठी आई थी। पर मुझे तुम्हारे मन की कॉन्फ्लिक्ट का भी पता है। यूँ तो मैं तुम्हारा अपना चुनाव हूँ, फिर भी मेरी उम्र और मेरे बन्धन तुम्हारा कॉन्फ्लिक्ट हैं। तुम्हारा मुँह देखा, तुम्हारे बोल सुने तो मेरी भटकन खत्म हो गई। पर आज तुम्हारा मुँह इनकारी है, तुम्हारे बोल इनकारी हैं। क्या इस धरती पर मुझे अभी और जीना है जहाँ मेरे लिए तुम्हारे सपनों ने दरवाज़ा भेड़ लिया है। तुम्हारे पैरों की आहट सुनकर मैंने जिंदगी से कहा था- अभी दरवाजा बन्द नहीं करो हयात। रेगिस्तान से किसी के कदमों की आवाज आ रही है। पर आज मुझे तुम्हारे पैरों का आवाज सुनाई नहीं दे रही है। अब जिंदगी को क्या कहूँ? क्या यह कहूँ कि अब सारे दरवाजे बन्द कर ले......। ....अमृता५....मेरे सारे रास्ते कठिन हैं। तुम्हें भी जिस रास्ते पर मिला, सारे का सारा कठिन है, पर यही मेरा रास्ता है।.....मुझ पर और भरोसा करो, मेरे अपनत्व पर पूरा एतबार करो। जीने की हद तक तुम्हारा, तुम्हारे जीवन का जामिन, तुम्हारा जीती।....ये अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य का पल्ला तुम्हारे आगे फैलाता हूँ, इसमें अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को डाल दो।.....इमरोज़